
रायगढ़ आपकी आवाज : विस्थापन की पीड़ा बेहद गहरी होती है फिर वह अपना शहर हो, गांव या मोहल्ला लेकिन यदि विकास की बात हो तो यह पीड़ा स्वीकार करनी पड़ती है। विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और यह जारी रहनी भी चाहिए। बात यदि जन कल्याण की नीतियों से जुड़ी हो तो बेशक सरकारें किसी की हो बदलाव जरूरी हो जाता है जिनमें एक विस्थापन भी है। यहां यह बताना असंगत नही होगा कि एशिया मे सबसे बड़ा विस्थापन मध्यप्रदेश के हरसूद मे हुआ था। तकरीबन 200 से अधिक गांव इंदिरा सागर बांध के डूब क्षेत्र मे आने के कारण उन्हें विस्थापित करना पड़ा।
बहरहाल हम वर्तमान मे अपने शहर रायगढ़ मे प्रस्तावित मरीन ड्राइव के निर्माण हेतु चल रही तोड़फोड़ की बात करें तो विस्थापितों के साथ संवेदनाएं कम और ओछी राजनीति ही अधिक नजर आ रही है। इससे पूर्व कलेक्टर अमित कटारिया के साथ भी ऐसा ही हुआ था। जब सड़कों के चौड़ीकरण और तालाब के सौन्दर्यीकरण पर बात उठी थी। उस वक्त बेशक उनका तबादला हो गया था लेकिन आज शहर के लोग जयसिंह या गणेश तालाब के सौन्दर्यीकरण को उन्हीं की देन मानते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि जिन परिवारों को विस्थापित किया जा रहा है उनके पुनर्वास की क्या व्यवस्था हो रही है? बात प्रगति नगर की है जहां कई परिवारों ने अतिक्रमित जमीन पर वर्षों से कब्जा कर अपना आशियाना बना कर काबिज थे। बाढ़ की स्थिति मे वहां बसे लोगों को हर साल बाढ़ की विभीषिका भुगतनी पड़ती थी।इससे पूर्व भी केलो नदी के किनारे मरीन ड्राइव का निर्माण हो चुका है। लेकिन इस मरीन ड्राइव को लेकर जिस तरह राजनीतिक दखलंदाजी हो रही है वह सिर्फ विरोध की राजनीति ही है। वहां बसे लोगों को कानूनी नोटिस समय सीमा के साथ दी जा चुकी थी। इसके बावजूद खाली करने या ना करने पर भी तोड़फोड़ के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नही था। ओ.पी.चौधरी के विकास के ड्रीम प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा भी था और यह विकास शहरवासियों के हित मे था। जिसकी अगली कड़ी मे केलो रिवर व्यू फ्रन्ट भी निश्चित तौर पर शामिल होगा यह मेरा व्यक्तिगत अनुमान है। साल के तीन सौ चौसठ दिन केलो नदी को झांकने तक नहीं आने वाले लोग जब महहज एक दिन केलो नदी की महाआरती जैसा ढोंग करते हैं तो लगता है सरकारी अस्पताल के जनरल वार्ड मे पड़ी केलो मैया को आई.सी.यू.मे शिफ्ट कर दिया गया हो। अब जबकि केलो नदी के सौन्दर्यीकरण की दिशा मे प्रयास शुरू हो रहे है तो उसी सौन्दर्यीकरण के खिलाफ खड़े लोगों को विघ्न संतोषी नहीं तो क्या कहा जाए। गरीबों के आका बन मगरमच्छ के आंसू बहाने वाले भूल जाते है कि उनके शासनकाल मे उन्हीं के मुख्यमंत्री ने गरीबों के लिए पी.एम.आवास योजना का हिस्सा रोक दिया था। जिसे मौजूदा सरकार ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल मे सर्वोच्च प्राथमिकता मे रखा। नतीजे पूरे राज्य मे रायगढ ने अव्वल जगह बनाई है तो इसका अधिकतम श्रेय रायगढ़ के विधायक और छ.ग. के वित्त मंत्री ओ.पी.चौधरी को है। विस्थापितों को पुनः स्थापित करने की दिशा मे जिस तत्परता और संवेदनशीलता से उनके प्रयास भी जा़री है उसे नकारा नही जा सकता।जरूरत है तो बस धैर्य की।
दरअसल ओ.पी.चौधरी ने रायगढ़ विधायक बनने के बाद से ही क्रमशः हर क्षेत्र मे विकास के जो बीज बोए थे वे अब अंकुरित हो पौधे की शक्ल अख्तियार कर चुके है जो विरोधियों को हजम नहीं हो पा रहे है और अनापशनाप बयानबाजी कर वे अपनी ही भद्द पिटा रहे है। जिस दिन ये योजनाएं साकार रुप लेना शुरू होंगी पर्यावरण भी सुधरेगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। प्रसव वेदना के दौर से गुजर रहे रायगढ़ को खूबसूरत बनाने मे सहानुभूति और सहयोग की जरूरत है ना कि गिद्ध राजनीति की।
आशा त्रिपाठी
